बुधवार, 7 नवंबर 2007

First strike

कभी सोचा भी न था कि यहां दिल्ली में बैठ कर ब्लाग लिखूंगा। ब्लाग लिखने की कहानी से ज्यादा बड़ी न लिखने की कहानी है। आज उस पते का प्रयोग नहीं कर पा रहा हूं जिसने मुझे Times o f india की वेबसाइट पर जगह दी । जिस नाम से मैं पता नहीं कितनों के बीच जाना गया और जहां अभी भी लोग एक बार जरूर गुजरते हैं वो ही पता अनजाना हो गया है। वह पता जुड़ा है ढेर सारी खुशियों यादों और दुख से। लेकिन फिर भी जब आज ...पहली बार हिंदी में ... और एक नये कलेवर के साथ लिखने बैठा तो सबसे पहले वही याद आया।

दिल्ली आये छह महीने हो गये हैं। जिसके पीछे योगदान, सहायता और सब कुछ जो किसी मीडिया मैन को मीडिया रोड पर पैर रखने की जगह बनाता है... वह सब सचिन भाई का है। अगर वे यहां न होते तो दिल्ली में आ तो जाता पर आज जिस पोजीशन पर हूं उस पोजीशन पर नहीं होता। उनका एहसान है। उन्होंने उस वक्त साथ दिया जब मैं उनसे उम्मीद ही नहीं कर रहा था। जिससे उम्मीदे थी वे बदल गये या यूं कहूं कि सही वक्त पर साथ ही नहीं दिया।

फिलहाल दिल्ली की मीडिया रोड पर लड़खड़ा ही सही दौड़ना शुरु कर चुका हूं। अभी तक गिरता ही रहा हूं। पर कई बार उठा भी हूं। लेकिन पहली स्ट्राइक है औऱ टीम को जिताना है।

सचिन भाई आपको एक बार फिर से धन्यवाद... जानता हूं आपने जितना किया है उसके आगे धन्यवाद शब्द छोटा है पर अभी तो यही है मेरे पास ....आपको देने के लिए।

1 टिप्पणी:

चंद्रभुवन ने कहा…

प्रमोद जी आज अपने ब्लॉग को अपडेट करने बैठा तो खुशकिस्मती से आपकी 'रोड'पर आ टपका। सच कहूं तो मुझे ब्लॉग के बारे में ज्यादा जानकरी नहीं है जितनी भी है वो आपकी दी हुई है। आज से मैने भी लिखना शुरु कर दिया है इंशाअल्लाह लिखता रहूंगा। एक बात जो आपने सचिन जी के लिए लिखी थी वो दिल को छू गई...शायद मेरी भी यही भावनाएं हैं जो आपने शब्दों से बयान की हैं...।
आशा है,
आपसे शाब्दिक मुलाकात होगी

चंद्रभुवन