मंगलवार, 20 नवंबर 2007

कभी-कभी रिश्ते भी पैसों की जगह लेते हैं

किसी ने कहा था कि पत्रकारिता को ईमानदारी का साथ चाहिए। आज के दिन ये परिभाषा बदलती हुयी दिख रही है। अब आज के पत्रकारों को पैसे का साथ चाहिए। पैसे के साथ के बाद इमानदारी का साथ चाहिए। पैसा पहले है इमानदारी बाद में हैं। अब मीडिया हाउस कारपोरेट हाउस बनते जा रहे हैं(अगर कहूं की बन गये है तो ज्यादा सही होगा)। अब मीडिया हाउस का निर्माण ऐसे ही होता है...
कोई नहीं कहता कि किस तरह की दुनिया उनकी है। लेकिन हर कोई चाहता है कि दूसरों की दुनिया उनके जैसी हो।
दोनों बाते अलग हैं।
कभी-कभी रिश्ते भी पैसों की जगह लेते हैं।

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